Saturday, July 28, 2012

(भारतीय संस्कृति ही सर्वश्रेष्ठ है)

आर पार लड़ाई का शंखनाद 9 अगस्त 2012 , अब या तो हम रहेंगें या ये भ्रष्ट व्यवस्था ... चलो दिल्ली
देश में पिछले 10 वर्षों में देश के अन्नदाता व भूमिपुत्र दो लाख किसानों द्वारा की गई आत्महत्या, प्रतिवर्ष 20 हज़ार किसानों की आत्माहत्या तथा प्रतिदिन 56 व प्रत्येक घण्टे में 2 किसान आत्महत्या कर लेते हैं !
देश के लोकतन्त्र पर इससे बड़ा कलंक कुछ और नहीं हो सकता ! ( स्रोत- नेशनल क्राइम ब्यूरो के अनुसार जो रिपोर्टेड केस हैं)
देश में प्रतिवर्ष 60 से 70 लाखलोग , प्रतिदिन 20 हज़ार (20,000 ) लोग , प्रत्येक घण्टे में 833 तथा प्रति मिनट 13 व्यक्ति भूख व कुपोषण से मर रहे हैं ( स्रोत :- ग्लोबल हंगर इण्डेक्स के अनुसार )
देश में 84 करोड़ लोग 20 रूपये मात्र पर प्रतिदिन जीवन - यापन कर रहे हैं और ये 84 करोड़ लोग मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित हैं! ( प्रोफ़ेसर अर्जुनसेन गुप्त व भारत सरकार के आर्थिक सर्वेक्षणों की रिपोर्ट )
आज आज़ादी के 65 वर्षों बाद भी 3करोड़ 33 लाख 5 हज़ार 845 मामलेदेश की विभिन्न अदालतों में लम्बित हैं ! सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड चीफ जस्टिस जे.एस. वर्मा के अनुसार इन लम्बित मामलों को निपटाने में लगभग 350वर्ष लगेंगें !
"सोचिये जरा" ये न्याय के नाम पर कितना बड़ा अन्याय है और हमारे ईमानदार जज भी कई बार अंग्रेजों द्वारा बनाये गए गलत कानूनों के कारण न्याय की उपेक्षा मात्र फैसला ही दे पाते हैं !
भोपाल गैस काण्ड इसका सबसे बड़ा उदाहरण है!
हमारी लड़ाई भारत के अन्तिम व्यक्ति को सामजिक व आर्थिक न्याय दिलाने की है, विदेशों में जमा काला धन देश को वापस दिलाने की, भ्रष्टाचार के विरूद्ध सशक्त जनलोकपाल बिल बनवाना और अंग्रेजों द्वारा बनायीं गयी अन्यायपूर्ण भ्रष्ट व्यवस्था में परिवर्तन लाने की है.. हम अपनी अन्तिम साँस तक इस लड़ाई को लड़ेंगें !
जय हो !-स्वामी रामदेव
आन्दोलन से जुड़ने के लिए 02233081122 टोल फ्री नम्बर पर मिस कॉल करें एवं www.bharatswabh imantrust.org
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वन्दे मातरम् ,
जय गौ मातरम्
भारत माता की जय , इन्कलाब जिन्दाबाद

goldan bird bharat

कालगणना-१ : काल का खगोल से सम्बंध
इस सृष्टि की उत्पति कब हुई तथा यह सृष्टि कब तक रहेगी यह प्रश्न मानव मन को युगों से मथते रहे हैं। इनका उत्तर पाने के लिए लिए सबसे पहले काल को समझना पड़ेगा। काल जिसके द्वारा हम घटनाओं-परिवर्तन ों को नापते हैं, कबसे प्रारंभ हुआ?
इस सृष्टि की उत्पति कब हुई तथा यह सृष्टि कब तक रहेगी यह प्रश्न मानव मन को युगों से मथते रहे हैं।
आधुनिक काल के प्रख्यात ब्रह्माण्ड विज्ञानी स्टीफन हॉकिन्स ने इस पर एक पुस्तक लिखी -brief history of time (समय का संक्षिप्त इतिहास)। उस पुस्तक में वह लिखता है कि समय कब से प्रारंभ हुआ। वह लिखता है कि सृष्टि और समय एक साथ प्रारंभ हुएजब ब्रह्माण्डोत्पत ि की कारणीभूत घटना आदिद्रव्य में बिगबैंग (महाविस्फोट) हुआ और इस विस्फोट के साथ ही अव्यक्त अवस्था से ब्रह्माण्ड व्यक्त अवस्था में आने लगा। इसी के साथ समय भी उत्पन्न हुआ। अत: सृष्टि और समय एक साथ प्रारंभ हुए और समय कब तक रहेगा, तो जब तक यह सृष्टि रहेगी, तब तक रहेगा, उसके लोप के साथ लोप होगा। दूसरा प्रश्न कि सृष्टि के पूर्व क्या था? इसके उत्तर में हॉकिन्स कहता है कि वह आज अज्ञात है। पर इसे जानने का एक साधन हो सकता है। कोई तारा जब मरता है तो उसका र्इंधन प्रकाश औरऊर्जा के रूप में समाप्त होने लगता है। तब वह सिकुड़ने लगता है। और भारतवर्ष में ऋषियों ने इस पर चिंतन किया, साक्षात्कार किया। ऋग्वेद के नारदीय सूक्त में सृष्टि उत्पत्ति के पूर्व की स्थिति का वर्णन करते हुए कहा गयाकि तब न सत् था न असत् था, न परमाणुथा न आकाश, तो उस समय क्या था? तब न मृत्यु थी, न अमरत्व था, न दिन था, नरात थी। उस समय स्पंदन शक्ति युक्त वह एक तत्व था।
सृष्टि पूर्व अंधकार से अंधकार ढंका हुआ था और तप की शक्ति से युक्त एक तत्व था। सर्वप्रथम
हमारे यहां ऋषियों ने काल की परिभाषा करते हुए कहा है "कलयति सर्वाणि भूतानि", जो संपूर्ण ब्रह्माण्ड को, सृष्टि को खा जाताहै। साथ ही कहा कि यह ब्रह्माण्ड एक बार बना और नष्ट हुआ, ऐसा नहीं होता। अपितु उत्पत्ति और लय पुन: उत्पत्ति और लय यह चक्र चलता रहताहै। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति, परिवर्तन और लय के रूप में विराट कालचक्र चल रहा है। काल के इस सर्वग्रासी रूप का वर्णन भारत में और पश्चिम में अनेक कवियों नेकिया है। हमारे यहां इसको व्यक्त करते हुए महाकवि क्षेमेन्द्र कहते हैं-
अहो कालसमुद्रस्य न लक्ष्यन्ते तिसंतता:।
मज्जन्तोन्तरनन् तस्य युगान्ता: पर्वता इव।।
अर्थात्-काल के महासमुद्र में कहीं संकोच जैसा अन्तराल नहीं, महाकाय पर्वतों की तरह बड़े-बड़े युग उसमें समाहित हो जाते हैं। पश्चिम में 1990 में नोबल पुरस्कार प्राप्त कवि आक्टोवियो पाज अपनी कविता Into the matter में काल के सर्वभक्षी रूप का वर्णन निम्न प्रकार से करते हैं।
A clock strikes the time
now its time
it is not time now, not it is now
now it is time to get rid of time
now it is not time
it is time and not now
time eats the now
now its time
windows close
walls closed doors close
the words gøo home
Nowwe are more alone.......... 1
अर्थात्
"काल यंत्र बताता है काल
आ गया आज, काल।
आज में काल नहीं, काल में आज नहीं,
काल को विदा देने का काल है आज।
काल है, आज नहीं,
काल निगलता है आज को।
आज है वह काल
वातायन बंद हो रहे हैं
दीवार है बंद
द्वार बन्द हो रहे हैं
वैखरी पहुंच रही है स्व निकेत
हम तो अब हैं अकेले"
इस काल को नापने का सूक्ष्मतम और महत्तम माप हमारे यहां कहा गया है।
श्रीमद्भागवत में प्रसंग आता है कि जब राजा परीक्षित महामुनि शुकदेव से पूछते हैं, काल क्या है?उसका सूक्ष्मतम और महत्तम रूप क्या है? तब इस प्रश्न का शुकदेव मुनि जो उत्तर देते हैं वह आश्चर्य जनक है, क्योंकि आज के आधुनिक युग में हम जानते हैं कि काल अमूर्त तत्व है। घटने वाली घटनाओं से हम उसे जानते हैं। आज से हजारों वर्ष पूर्व शुकदेव मुनि ने कहा- "विषयों का रूपान्तर" (बदलना) ही काल का आकार है। उसी को निमित्त बना वह काल तत्व अपने को अभिव्यक्त करता है। वह अव्यक्त से व्यक्त होता है।"
काल गणना
इस काल का सूक्ष्मतम अंश परमाणु है तथा महत्तम अंश ब्राहृ आयु है।इसको विस्तार से बताते हुए शुक मुनि उसके विभिन्न माप बताते हैं:-
2 परमाणु- 1 अणु - 15 लघु - 1 नाड़िका
3 अणु - 1 त्रसरेणु - 2 नाड़िका - 1 मुहूत्र्त
3 त्रसरेणु- 1 त्रुटि - 30 मुहूत्र्त - 1 दिन रात
100 त्रुटि- 1 वेध - 7 दिन रात - 1 सप्ताह
3 वेध - 1 लव - 2 सप्ताह - 1 पक्ष
3 लव- 1 निमेष - 2 पक्ष - 1 मास
3 निमेष- 1 क्षण - 2 मास - 1 ऋतु
5 क्षण- 1 काष्ठा - 3 ऋतु - 1 अयन
15 काष्ठा - 1 लघु - 2 अयन - 1 वर्ष
शुक मुनि की गणना से एक दिन रात में 3280500000 परमाणु काल होतेहैं तथा एक दिन रात में 86400 सेकेण्ड होते हैं। इसका अर्थ सूक्ष्मतम माप यानी 1 परमाणु काल 1 सेकंड का 37968 वां हिस्सा।
महाभारत के मोक्षपर्व में अ. 231 में कालगणना - निम्न है:-
15 निमेष - 1 काष्ठा
30 काष्ठा -1 कला
30 कला- 1 मुहूत्र्त
30 मुहूत्र्त- 1 दिन रात
दोनों गणनाओं में थोड़ा अन्तर है। शुक मुनि के हिसाब से 1 मुहूर्त में 450 काष्ठा होती है तथा महाभारत की गणना के हिसाब से 1 मुहूर्त में 900 काष्ठा होती हैं। यह गणना की भिन्न पद्धतियों को परिलक्षित करती है।
यह सामान्य गणना के लिए माप है। पर ब्रह्माण्ड की आयु के लिए, ब्रह्माण्ड में होने वाले परिवर्तनों को मापने के लिए बड़ी
कलियुग - 432000 वर्ष
2 कलियुग - द्वापरयुग - 864000 वर्ष
3 कलियुग - त्रेतायुग - 1296000 वर्ष
4 कलियुग - सतयुग - 1728000 वर्ष
चारों युगों की 1 चतुर्युगी - 4320000
71 चतुर्युगी का एक मन्वंतर - 306720000
14 मन्वंतर तथा संध्यांश के 15 सतयुग
का एक कल्प यानी - 4320000000 वर्ष
कालगणना-१ : काल का खगोल से सम्बंध--------------- -----------
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इस सृष्टि की उत्पति कब हुई तथा यह सृष्टि कब तक रहेगी यह प्रश्न मानव मन को युगों से मथते रहे हैं। इनका उत्तर पाने के लिए लिए सबसे पहले काल को समझना पड़ेगा। काल जिसके द्वारा हम घटनाओं-परिवर्तन ों को नापते हैं, कबसे प्रारंभ हुआ?
इस सृष्टि की उत्पति कब हुई तथा यह सृष्टि कब तक रहेगी यह प्रश्न मानव मन को युगों से मथते रहे हैं।
आधुनिक काल के प्रख्यात ब्रह्माण्ड विज्ञानी स्टीफन हॉकिन्स ने इस पर एक पुस्तक लिखी -brief history of time (समय का संक्षिप्त इतिहास)। उस पुस्तक में वह लिखता है कि समय कब से प्रारंभ हुआ। वह लिखता है कि सृष्टि और समय एक साथ प्रारंभ हुएजब ब्रह्माण्डोत्पत ि की कारणीभूत घटना आदिद्रव्य में बिगबैंग (महाविस्फोट) हुआ और इस विस्फोट के साथ ही अव्यक्त अवस्था से ब्रह्माण्ड व्यक्त अवस्था में आने लगा। इसी के साथ समय भी उत्पन्न हुआ। अत: सृष्टि और समय एक साथ प्रारंभ हुए और समय कब तक रहेगा, तो जब तक यह सृष्टि रहेगी, तब तक रहेगा, उसके लोप के साथ लोप होगा। दूसरा प्रश्न कि सृष्टि के पूर्व क्या था? इसके उत्तर में हॉकिन्स कहता है कि वह आज अज्ञात है। पर इसे जानने का एक साधन हो सकता है। कोई तारा जब मरता है तो उसका र्इंधन प्रकाश औरऊर्जा के रूप में समाप्त होने लगता है। तब वह सिकुड़ने लगता है। और भारतवर्ष में ऋषियों ने इस पर चिंतन किया, साक्षात्कार किया। ऋग्वेद के नारदीय सूक्त में सृष्टि उत्पत्ति के पूर्व की स्थिति का वर्णन करते हुए कहा गयाकि तब न सत् था न असत् था, न परमाणुथा न आकाश, तो उस समय क्या था? तब न मृत्यु थी, न अमरत्व था, न दिन था, नरात थी। उस समय स्पंदन शक्ति युक्त वह एक तत्व था।
सृष्टि पूर्व अंधकार से अंधकार ढंका हुआ था और तप की शक्ति से युक्त एक तत्व था। सर्वप्रथम
हमारे यहां ऋषियों ने काल की परिभाषा करते हुए कहा है "कलयति सर्वाणि भूतानि", जो संपूर्ण ब्रह्माण्ड को, सृष्टि को खा जाताहै। साथ ही कहा कि यह ब्रह्माण्ड एक बार बना और नष्ट हुआ, ऐसा नहीं होता। अपितु उत्पत्ति और लय पुन: उत्पत्ति और लय यह चक्र चलता रहताहै। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति, परिवर्तन और लय के रूप में विराट कालचक्र चल रहा है। काल के इस सर्वग्रासी रूप का वर्णन भारत में और पश्चिम में अनेक कवियों नेकिया है। हमारे यहां इसको व्यक्त करते हुए महाकवि क्षेमेन्द्र कहते हैं-
अहो कालसमुद्रस्य न लक्ष्यन्ते तिसंतता:।
मज्जन्तोन्तरनन् तस्य युगान्ता: पर्वता इव।।
अर्थात्-काल के महासमुद्र में कहीं संकोच जैसा अन्तराल नहीं, महाकाय पर्वतों की तरह बड़े-बड़े युग उसमें समाहित हो जाते हैं। पश्चिम में 1990 में नोबल पुरस्कार प्राप्त कवि आक्टोवियो पाज अपनी कविता Into the matter में काल के सर्वभक्षी रूप का वर्णन निम्न प्रकार से करते हैं।
A clock strikes the time
now its time
it is not time now, not it is now
now it is time to get rid of time
now it is not time
it is time and not now
time eats the now
now its time
windows close
walls closed doors close
the words gøo home
Nowwe are more alone.......... 1
अर्थात्
"काल यंत्र बताता है काल
आ गया आज, काल।
आज में काल नहीं, काल में आज नहीं,
काल को विदा देने का काल है आज।
काल है, आज नहीं,
काल निगलता है आज को।
आज है वह काल
वातायन बंद हो रहे हैं
दीवार है बंद
द्वार बन्द हो रहे हैं
वैखरी पहुंच रही है स्व निकेत
हम तो अब हैं अकेले"
इस काल को नापने का सूक्ष्मतम और महत्तम माप हमारे यहां कहा गया है।
श्रीमद्भागवत में प्रसंग आता है कि जब राजा परीक्षित महामुनि शुकदेव से पूछते हैं, काल क्या है?उसका सूक्ष्मतम और महत्तम रूप क्या है? तब इस प्रश्न का शुकदेव मुनि जो उत्तर देते हैं वह आश्चर्य जनक है, क्योंकि आज के आधुनिक युग में हम जानते हैं कि काल अमूर्त तत्व है। घटने वाली घटनाओं से हम उसे जानते हैं। आज से हजारों वर्ष पूर्व शुकदेव मुनि ने कहा- "विषयों का रूपान्तर" (बदलना) ही काल का आकार है। उसी को निमित्त बना वह काल तत्व अपने को अभिव्यक्त करता है। वह अव्यक्त से व्यक्त होता है।"
काल गणना
इस काल का सूक्ष्मतम अंश परमाणु है तथा महत्तम अंश ब्राहृ आयु है।इसको विस्तार से बताते हुए शुक मुनि उसके विभिन्न माप बताते हैं:-
2 परमाणु- 1 अणु - 15 लघु - 1 नाड़िका
3 अणु - 1 त्रसरेणु - 2 नाड़िका - 1 मुहूत्र्त
3 त्रसरेणु- 1 त्रुटि - 30 मुहूत्र्त - 1 दिन रात
100 त्रुटि- 1 वेध - 7 दिन रात - 1 सप्ताह
3 वेध - 1 लव - 2 सप्ताह - 1 पक्ष
3 लव- 1 निमेष - 2 पक्ष - 1 मास
3 निमेष- 1 क्षण - 2 मास - 1 ऋतु
5 क्षण- 1 काष्ठा - 3 ऋतु - 1 अयन
15 काष्ठा - 1 लघु - 2 अयन - 1 वर्ष
शुक मुनि की गणना से एक दिन रात में 3280500000 परमाणु काल होतेहैं तथा एक दिन रात में 86400 सेकेण्ड होते हैं। इसका अर्थ सूक्ष्मतम माप यानी 1 परमाणु काल 1 सेकंड का 37968 वां हिस्सा।
महाभारत के मोक्षपर्व में अ. 231 में कालगणना - निम्न है:-
15 निमेष - 1 काष्ठा
30 काष्ठा -1 कला
30 कला- 1 मुहूत्र्त
30 मुहूत्र्त- 1 दिन रात
दोनों गणनाओं में थोड़ा अन्तर है। शुक मुनि के हिसाब से 1 मुहूर्त में 450 काष्ठा होती है तथा महाभारत की गणना के हिसाब से 1 मुहूर्त में 900 काष्ठा होती हैं। यह गणना की भिन्न पद्धतियों को परिलक्षित करती है।
यह सामान्य गणना के लिए माप है। पर ब्रह्माण्ड की आयु के लिए, ब्रह्माण्ड में होने वाले परिवर्तनों को मापने के लिए बड़ी
कलियुग - 432000 वर्ष
2 कलियुग - द्वापरयुग - 864000 वर्ष
3 कलियुग - त्रेतायुग - 1296000 वर्ष
4 कलियुग - सतयुग - 1728000 वर्ष
चारों युगों की 1 चतुर्युगी - 4320000
71 चतुर्युगी का एक मन्वंतर - 306720000
14 मन्वंतर तथा संध्यांश के 15 सतयुग
का एक कल्प यानी - 4320000000 वर्ष

Thursday, July 12, 2012

जल की छोटी-छोटी बूंदें भी जब लगातार प्रहार करती हैं, तो बड़ी से बड़ी चट्टान को भेदकर रख देती हैं… =============== हम फ़ेसबुक पर इसी भावना और लगन के साथ काम करते हैं…

जल की छोटी-छोटी बूंदें भी जब लगातार प्रहार करती हैं, तो बड़ी से बड़ी चट्टान को भेदकर रख देती हैं… =============== हम फ़ेसबुक पर इसी भावना और लगन के साथ काम करते हैं…

Sunday, July 8, 2012

श्री रामायण कल्पना नही जीवन की सच्चाई है दुनिया की सबसे पुरानी सनातन संस्कृति पर अक्सर आरोप लगते है कि वह केवल कल्पना है. लेकिन पिछले कुछ सालों में हुए साइंटिफिक खुलासों ने साबित कर दिया है कि परभु श्री राम कोई कल्पना नही बल्कि एक मीठी सच्चाई है. वैगयानिकों ने रामायण काल की असली तारीख निकालने के बाल्मिकी रामायण का सहारा लिया और साबित करदिया कि भगवान श्री ने बुआियों काख़ात्मा करने के लिए इस धरती पर अवतार लिया था. बाल्मिकी रामायण श्री राम के सिंहासन पर बैठने के बाद लिखी गई. इस कथा को लिखने वालेमहर्षि बाल्मिकी एक महान खगोलविदथे. उन्होने अपनी कथा में राशि, ग्रह और नक्षत्रों की स्थितियों का वर्णन किया था. प्लेनेटरीयम सॉफ़्टवेर की मदद से वैगयानिकों ने उन खगोलीय स्थितियों के आँकड़ों को कंप्यूटर में डाला तो धीरे धीरे श्री रामायण युग की वास्तविक तारीखों का रहस्य उजागरहोता चला गया. इस सॉफ्टवेर के ज़रिए सबसे पहले श्री राम के जानमकी वास्तविक तारीख पता की गयी. बाल्मिकी रामायण के अनुसार श्री राम का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी हुआ था. उस समय सूर्या, मंगल, गुरु, शुक्र, शनि ये पाँच ग्रह उच्च पक्ष में विधमान थे. चैत्र माह में शुक्ल पक्ष नवमी के दोपहर 12 बजे का समय था. जबइन स्थितियों को कंप्यूटर में डाला गया तो वह 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व निकली. इसी प्रकार श्रीराम के वनवास की तारीख 5 जनवरी 5089 ईसा पूर्व निकली.. 14 साल के वनवास को जाते समय श्री राम की आयु 25 वर्ष थी. श्री राम ने वनवासके 13वें साल में खर- दुषण का वध किया. उनके वध की तारीख 5 अक्तूबर 5077 ईसा पूर्व रही है. उस दिन सूर्य ग्रहण हुआ था और रात को अमावस्या थी. प्लेनेतेरियमसॉफ़्टवेयर के अनुसार हनुमान जी 14 सितंबर 5076 ईसा पूर्व को सवेरे साढ़े 6 बजे लंका दहन करके श्री राम के पास वापस पहुँचे थे. श्री राम रावण का वध करके 2 जनवरी 5076 ईसापूर्व को वापस अयोध्या पहुँचे. उससमय उनकी उम्र 39 वर्ष हो चुकी थी.बाल्मिकी रामायण के अनुसार रमेश्वरम से श्रीलंका तक समुद्र के ऊपर पुल बनाया. नासा समेत अन्य स्पेस एजेंसियाँ अपने सेटेलीट फोटॉन के ज़रिए श्री राम सेतु के होने की पुष्टि कर चुकी हैं. जय श्री राम जय श्री सनातन संस्कृति